इस दिवाली पर गणेश व भगवती महालक्ष्मी के पूजन का शुभ मुहूर्त
इस दीवाली पर गणेश व भगवती महालक्ष्मी के पूजन का शुभ मुहूर्त सायंकाल 5.34 से 8.11 बजे तक है। इसमें पूजन करने से समस्त सुख-सम्पत्ति मिलेगी
दीवाली पर पूजी जाने वाली भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृष्य एवं अदृष्य सभी सम्पत्तियों और अष्ट सिद्धि एवं नौ निधियों की अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं। भगवान श्रीगणेश सिद्धि-बुद्धि और शुभ-लाभ के स्वामी तथा सभी अमंगलों एवं विघ्नों के नाशक हैं, ये सत्बुद्धि प्रदान करने वाले हैं। अत: दीपावली के दिन इनके समवेत पूजन से सभी कल्याण-मंगल एवं आनंद प्राप्त होते हैं। दीपावली के दिन चौमुख दीपक रातभर प्रदीप्त रहना शुभ एवं मंगलप्रदायक होता है।
ये है दीवाली पर लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त
महालक्ष्मी पूजन में अमावस्या तिथि, प्रदोषकाल, शुभलग्न व चौघडिय़ां विशेष महत्व रखते हैं। महालक्ष्मी पूजन सायंकाल प्रदोषकाल में करना चाहिए। ब्रह्मपुराण में कहा गया है:
कार्तिके प्रदोषेतु विशेषेण अमावस्या निषाबर्धके। तस्यां सम्पूज्येत देवी भोग मोक्ष प्रदायिनीम।।
अर्थात लक्ष्मी पूजा दीपदान के लिए प्रदोष काल (रात्रि का पंचमांष प्रदोष काल कहलाता है) ही विशेषतया प्रशस्त माना जाता है। दीपावली के दिन प्रदोषकाल सायंकाल 5.34 से 8.11 बजे तक रहेगा। सायंकाल 7.14 से 7.52 बजे तक प्रदोष काल, स्थिर वृष लग्न एवं शुभ का चौघडिय़ा रहेगा, अत: लक्ष्मी पूजन का यह सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है। परन्तु शास्त्रों में कार्तिक कृष्ण अमावस्या की सम्पूर्ण रात्रि को काल रात्रि माना गया है। अत: सम्पूर्ण रात्रि में पूजा की जा सकती है।
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पंचांग के पांच अंग तिथि
हिन्दू काल गणना (हिन्दू कैलेंडर) के अनुसार ‘सूर्य रेखांक’ से ‘चन्द्र रेखांक’ को बारह अंश ऊपर जाने के लिए जो समय लगता है। वह तिथि कहलाती है। एक माह में 30 तिथियां होती हैं। और ये तिथियां 2 पक्षों में विभाजित होती हैं। शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है। तिथि के नाम – प्रतिपदा (Pratipada), द्वितीया (Dwitiya), तृतीया (Tritiya), चतुर्थी (Chaturthi), पंचमी (Panchami), षष्ठी (Shashthi), सप्तमी (Saptami), अष्टमी (Ashtami), नवमी (Navami), दशमी (Dashami), एकादशी (Ekadashi), द्वादशी (Dwadashi), त्रयोदशी (Trayodashi), चतुर्दशी (Chaturdashi), अमावस्या/पूर्णिमा (Amavasya / Poornima)।
नक्षत्र
आकाश मंडल में एक तारा समूह को कहा जाता है। 27 नक्षत्र जिसमे होते हैं। और इन 27 नक्षत्रों का स्वामित्व नौ ग्रहों को प्राप्त है। 27 नक्षत्रों के नाम – कृत्तिका नक्षत्र, रोहिणी नक्षत्र, मृगशिरा नक्षत्र, अश्विन नक्षत्र, भरणी नक्षत्र, आर्द्रा नक्षत्र, पुनर्वसु नक्षत्र, पुष्य नक्षत्र, आश्लेषा नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र, स्वाति नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, मघा नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र, रेवती नक्षत्र, अनुराधा नक्षत्र, ज्येष्ठा नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र, घनिष्ठा नक्षत्र, शतभिषा नक्षत्र, मूल नक्षत्र, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र।
वार
वार से मतलब दिन से है। 1 एक सप्ताह सात वार / दिन होते हैं। ग्रहों के नाम से ये सात वार / दिन रखे गए हैं – सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार।
योग
योग भी नक्षत्र की तरह ही 27 प्रकार के होते हैं। योग सूर्य-चंद्र (Sun-Moon) की विशेष दूरियों की स्थितियों को कहा जाता है। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम – शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, विष्कुम्भ, प्रीति, व्याघात, हर्षण, वज्र, आयुष्मान, सौभाग्य, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, सिद्धि, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य।
करण
दो करण 1 तिथि में होते हैं। कुल मिलाकर 11 करण होते हैं। जिनके नाम कुछ इस प्रकार हैं – गर, वणिज, चतुष्पाद, बालव, कौलव, तैतिल, नाग और किस्तुघ्न, बव, विष्टि, शकुनि। करण को भद्रा विष्टि कहते हैं। व शुभ कार्य करना भद्रा में वर्जित माने गए हैं।
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