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संतोषी माता व्रत विधि
ज्योतिष विद्या के अनुसार शुक्रवार का दिन भगवान गणेश और रिद्धि-सिद्धि की पुत्री माता संतोषी को समर्पित है. इस दिन पूरे विधि विधान से मां संतोषी की पूजा-अराधना की जाती है तथा व्रत रखा जाता है. इस व्रत को पुरुष, महिला व बच्चे कोई भी कर सकते हैं. इस दिन उपवास करने से घर में सुख-शांति और धन-समृद्धि आती है. मां की कृपा से सारी चिंताओं से मुक्ति मिलती है, संतान सुख की प्राप्ति होती है और कष्टों का निवारण होता है. इस दिन नियमपूर्वक उपवास करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. अगर आप भी मां संतोषी का व्रत रखना चाहते हैं, तो यहां विस्तार से जानिए संतोषी माता का व्रत कब करें, कैसे करें, संतोषी मां के व्रत की पूजा विधि, नियम, कथा, आरती और उद्यापन विधि की संपूर्ण जानकारी.
संतोषी माता कौन है?
संतोषी माता के पिता का नाम गणेश और माता का नाम रिद्धि-सिद्धि है। संतोषी माता के पिता गणेश और माता रिद्धि-सिद्धि धन, धान्य, सोना, चांदी, मूंगा, रत्नों और ज्ञान से भरा पूरा परिवार है। इसलिए उनकी प्रसन्न करके ये फल मिलता है कि वो परिवार में सुख-शांति और मनोंकामनाओं की पूरा कर शोक, विपत्ति, चिंता परेशानियों को दूर कर देती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सुख-सौभाग्य की कामना के लिए माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है।
मां संतोषी ,संतोष की देवी हैं। मां संतोषी प्रेम, संतोष, क्षमा, खुशी और आशा की प्रतिक हैं जो उनके शुक्रवार की व्रत कथा में कहा गया है। यह बहुत माना जाता है की लगातार 16 शुक्रवार को व्रत और प्रार्थना करने से भक्तों के जीवन में शांति और समृद्धि व्याप्त हो जाती है। मां संतोषी व्यक्ति को पारिवारिक मूल्यों का और दृढ़ संकल्प के साथ संकट से बाहर आने के लिए प्रेरित करती हैं। संतोषी मां भी मां दुर्गा का ही अवतार मानी जाती हैं और व्यापक रूप से पुरे भारत में और भारत के बाहर भी पूजी जाती हैं।
संतोषी माता का जन्म
ऐसा माना जाता है कि एक बार भगवान गणेश की बहन मनसा देवी रक्षा बंधन पर गणेश को राखी बांधने आई उस समय गणेश के दो पुत्र शुभ और लाभ भी थे ।पिता के हाथों में राखी बांधते देख शुभ और लाभ ने गणेश जी से एक बहन की कामना की।
फिर गणेश जी अपने पुत्रों की बात मानते हुए एक देवी को उत्तपन्न की जिनको आज हम लोग संतोषी माता के नाम से जानते है।
संतोषी माता का परिवार
दादाजी- भगवान शिव
दादीजी- देवी पार्वती
पिता- भगवान गणेश
मां- या तो रिद्धी या सिद्धी
भाई- शुभ और लाभ
कब से शुरू करें संतोषी माता का व्रत
शुक्रवार का व्रत किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले शुक्रवार से प्रारंभ करना चाहिए.
कितनी संख्या में करें मां संतोषी का व्रत?
लगातार 16 शुक्रवार तक संतोषी माता का व्रत करना फलदायी होता है.
संतोषी माता व्रत के नियम
इस दिन व्रत रखने वाले और घर के किसी भी सदस्य को कोई भी खट्टी चीज, खट्टी फल या अचार नहीं खाना चाहिए। व्रती को इस दिन किसी भी खट्टी चीज को स्पर्श करने से भी बचना चाहिए | जिस घर का कोई सदस्य व्रती है उस दिन घर के किसी सदस्य को मदिरा पान नहीं करना चाहिए.
माता संतोषी को भोग लगाने वाला प्रसाद गुड़ और चने स्वयं भी अवश्य खाने चाहिए.
व्रत के दौरान गाय को गुड़ और चना खिलाना भी शुभ माना जाता है.
शुक्रवार संतोषी माता व्रत पूजा विधि
शुक्रवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर घर की साफ-सफाई कर स्नान कर लें. इसके बाद घर के ईशान कोण में संतोषी मां का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें. इसके बाद पहले शुक्रवार के दिन माता के समक्ष हाथ जोड़कर 16 शुक्रवार व्रत करने का संकल्प लें. अब अपना व्रत आरंभ करें. सबसे पहले जल से भरा एक बर्तन लें. जल से भरे उस बर्तन के ऊपर एक कटोरी रखकर उसमें गुड़ और चना रखें. अब मां के समक्ष घी का दीपक जलाएं. इसके बाद माता संतोषी का नाम लेकर उनकी व्रत कथा पढ़ें. कथा के बाद माता संतोषी की आरती करें. जल का बर्तन जो पूजा से पहले स्थापित किया गया था उसके जल का छिड़काव पूरे घर में करें जो जल बच जाए उसे किसी पौधे में डाल दें. अब गुड़-चने का प्रसाद घर के सभी सदस्यों को दें व खुद भी खाएं.
माता संतोषी को प्रसन्न करने के मंत्र
आप शुक्रवार व्रत के दौरान यहां दिए किसी भी मंत्र का जप कर मां संतोषी को प्रसन्न कर सकते हैं.
ॐ श्री संतोषी महामाया गजानंदम दायिनी शुक्रवार प्रिये देवी नारायणी नमोस्तुते!
जय माँ संतोषी देवी नमो नमः
संतोषी माँ महामंत्र
श्री संतोषी देव्व्ये नमः
ॐ श्री गजोदेवोपुत्रिया नमः
ॐ सर्व निवार्नाये देविभुता नमः
ॐ संतोषी महादेव्व्ये नमः
ॐ सर्वकाम फलप्रदाय नमः
ॐ ललिताये नमः
शुक्रवार व्रत में क्या खाना चाहिए
शुक्रवार व्रत के दौरान शाम में एक समय भोजन ग्रहण करें. इस दिन खट्टे फल, सब्जी आदि किसी भी प्रकार की खट्टी चीजों का सेवन न करें. आप फल, दूध, रोटी, हलवा, गुड़, चना आदि चीजों का सेवन कर सकती हैं
शुक्रवार संतोषी माता व्रत उद्यापन विधि
16 शुक्रवार विधिवत तरीके से पूजा करने पर ही संतोषी माता व्रत का शुभ फल मिलता है. इसके बाद व्रत का उद्यापन करना जरूरी होता है. उद्यापन के लिए 16वें शुक्रवार यानी अंतिम शुक्रवार को बाकी के दिनों की तरह ही पूजा, कथा व आरती करें. इसके बाद 8 बालकों को खीर-पूरी-चने का भोजन कराएं तथा दक्षिणा व केले का प्रसाद देकर उन्हें विदा करें. अंत में स्वयं भोजन ग्रहण करें. इस दिन घर में कोई खटाई ना खाए, ना ही किसी को कुछ भी खट्टा दें.
मां संतोषी की व्रत-कथा
एक बुढ़िया थी और उसका एक ही पुत्र था। बुढ़िया पुत्र के विवाह के बाद बहू से घर के सारे काम करवाती थी लेकिन उसे ठीक से खाना नहीं देती थी। यह सब लड़का देखता पर मां से कुछ भी कह नहीं पाता था। काफी सोच - विचार कर एक दिन लड़का मां से बोला- मां, मैं परदेस जा रहा हूं।´मां ने बेटे जाने की आज्ञा दे दी। इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- मैं परदेस जा रहा हूं, अपनी कुछ निशानी दे दे।´बहू बोली- `मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है। यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगी। इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई।
पुत्र के जाने बाद सास के अत्याचार और बढ़ते गए। एक दिन बहू दुखी हो मंदिर चली गई, वहां बहुत-सी स्त्रियां पूजा कर रही थीं। उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं। इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है, स्त्रियों ने बताया- शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लेना तथा सच्चे मन से मां का पूजन करना चाहिए। खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देन। एक वक्त भोजन करना, व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी। माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया, कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया। उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जा अन्य स्त्रियों से बोली- संतोषी मां की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है।´ अन्य सभी स्त्रियां भी श्रद्धा से व्रत करने लगीं। बहू ने कहा- हे मां! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूंगी।
अब एक रात संतोषी मां ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं. रुपया भी अभी नहीं आया है। उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही तथा घर जाने की इजाजत मांगी, पर सेठ ने इनकार कर दिया। मां की कृपा से कई व्यापारी आए, सोना-चांदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए। कर्जदार भी रुपया लौटा गए, अब तो साहूकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी। घर आकर पुत्र ने अपनी मां व पत्नी को बहुत सारे रुपये दिए। पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है. उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की सारी तैयारी की, पड़ोस की एक स्त्री उसे सुखी देख ईर्ष्या करने लगी थी। उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर मांगना।
उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे खटाई के लिए मचल उठे, तो बहू ने पैसा देकर उन्हें बहलाया। बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली-खटाई खरीद कर खाने लगे। तो बहू पर माता ने कोप किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे। तो किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली खटाई खाई है तो बहू ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया। संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया। पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका टैक्स राजा ने मांगा था। अगले शुक्रवार को उसने फिर विधिवत व्रत का उद्यापन किया। इससे संतोषी मां प्रसन्न हुईं। नौ माह बाद चांद-सा सुंदर पुत्र हुआ। अब सास, बहू तथा बेटा मां की कृपा से आनंद से रहने लगे।