केतु रहस्यों से भरा है ये ग्रह, दिलचस्प है इसके बनने की कहानी, जानें इसके शुभ-अशुभ प्रभाव आचार्य वि शास्त्री जी से
केतु एक छाया ग्रह है। यह एक रहस्यमयी ग्रह है। इसका कोई अपना वास्तविक रूप नहीं है और इसके स्वभाव के कारण भारतीय ज्योतिष शास्त्र में इसे एक पापी ग्रह मन गया है। केतु ग्रह भी किसी राशि का स्वामी नहीं है। लेकिन, इसके बावजूद भी यह हमारे जीवन को प्रत्यक्ष रूप में अत्यधिक प्रभावित करता है। यह धनु राशि में उच्च का और मिथुन राशि में नीच का माना जाता है। इसके बनने की कहानी भी बड़ी रोचक व दिलचस्प है।
आइये जानते है कैसे बना केतु ग्रह
केतु ग्रह के बनने की कहानी पौराणिक शास्त्रों में मिलती है। शास्त्रों के अनुसार, देव और असुर संग्राम में समुन्द्र मंथन से जो अमृत निकला, उस अमृत को जब एक अप्सरा द्वारा (जो विष्णु जी ने ही एक सुंदर अप्सरा के रूप बदला हुआ था ) बांटा जा रहा था, तो स्वरभानु नाम का राक्षस देवताओं की पंक्ति में देवतओं का रूप बदलकर बैठ गया। जब राक्षस स्वरभानु की अमृत पीने की बारी आई तो उसने अमृत तो पी लिया लेकिन चंद्र और सूर्य देव ने उसके भेद को उजागर कर दिया। इस कृत्य पर भगवान विष्णु जी को क्रोध आ गया और उन्होने अपने सुदर्शन चक्र से राक्षस स्वरभानु का सिर और धड़ दोनों को अलग कर दिया। तब राक्षस स्वरभानु का सिर राहु कहलाया और धड़ केतु बन गया, जो बाद में दोनों ग्रहों के रूप में स्थापित हो गए।
ज्योतिष में केतु ग्रह
भारतीय वैदिक ज्योतिष शास्त्र में केतु ग्रह को शुभ ग्रह नहीं माना जाता है। इसके दुष्प्रभाव से व्यक्ति को कई तरह की कठिनाइओं का सामना करना पड़ता है। राहु के साथ मिलकर यह कुंडली में कालसर्प दोष का भी निर्माण कर सकता है। यदि किसी जातक की कुंडली मैं लगन यानि प्रथम भाव में केतु विराजमान हो तो वह जातक अध्यात्म के क्षेत्र और धर्म में अग्रणी होता है। केतु ग्रह का प्रभाव व्यक्ति को भौतिक व पारिवारिक जीवन से दूर ले जाता है। इसके प्रभाव वाले जातक वैराग्य जीवन की ओर अग्रसर होते हैं।
आईये अब जानते है केतु के अशुभ प्रभाव
किसी जातक की कुंडली में यदि केतु ग्रह कमजोर हो तो जातकों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता हैं। खासकर व्यक्ति के सिर के नीचे का हिस्सा कमजोर होता है। उसे अपने नाना पक्ष से प्यार नहीं मिलता है। इसके अशुभ होने पर संतान को भी बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। केतु ग्रह के अशुभ प्रभाव से शारीरिक पीड़ाएं भी होती हैं। जातक को कान, घुटने, लिंग, किडनी, जोड़ों, रीढ़ की हड्डी, आदि के दर्द रोगों का सामना करना पड़ता है।
कुंडली में केतु को मजबूत कैसे करें
भारतीय ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में केतु को मजबूत करने के आसान उपाय बताये गए हैं। कुंडली में केतु को मजबूत करने के लिए गणेश जी की आराधान करें। दो रंग वाले कुत्ते को रोटी खिलाएं। केतु को मजबूत करने के लिए ज्योतिष में रुद्राक्ष, जड़ी और रत्न को धारण करना भी बताया गया है। केतु को शक्तिशाली बनाने के लिए लहसुनिया रत्न, अश्वगंधा की जड़ी और नौ मुखी रुद्राक्ष को धारण किया जाता है। इसके अलावा केतु यंत्र को स्थापित कर उसकी आराधन करना भी केतु ग्रह को मजबूत बनाता है।
किसी ज्ञानी के सरक्षण मैं यदि जातक माँ धूमावती देवी की साधना यदि करें तो शीग्र ही फल प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों में बताया गया है। धूमावती, वह महाविद्या है जो केतु की शक्ति को नियंत्रित करती है।